भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग / भूषण

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 4 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भूषण }} <poem> सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग,
             ताहि खरो कियो जाय जारन के नियरे .
जानि गैर मिसिल गुसीले गुसा धारि उर,
             कीन्हों न सलाम, न बचन बोलर सियरे.
भूषण भनत महाबीर बलकन लाग्यौ,
             सारी पात साही के उड़ाय गए जियरे .
तमक तें लाल मुख सिवा को निरखि भयो,
             स्याम मुख नौरंग, सिपाह मुख पियरे.