भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबु कि बौ, बदेणि बौ / केशव ध्यानी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:22, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव ध्यानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबु कि बौं<ref>भाभी</ref>, बदेणि<ref>नाचने वाली</ref> बौ
त्यारो घुँघरू बाज्यो छम।
धणा गौं का बाठा औंदी तु बाँदी
दुहाते<ref>दोनों हाथों से</ref> माया<ref>प्रेम</ref> बाँटदी जाँदी
गजब कदी तू आँख्यौंन खाँदी
इतरि नि छै तू जम-कम।
हातु नि पकड़ंदी, भुयाँ नी धरेंदी
क्वी धड़ि आँख्यौंन फंुडुनी करेंदी
तरसेंद त्वै पर, जै भी दिखेंदी
चालि-सि चंचल चम-चम।

बीच बजार मा मेलो लग्यूँ च
हर कौथगेर<ref>तमाशबीन</ref> त्वे पर मर्यूँ च
खौल कि तेरो खिरचा खत्यूँ च
खिरचा खत्यूँ च छम छम।

शब्दार्थ
<references/>