आँखें, पलक भिगोते हैं| सब के कुछ समझोते हैं|
नींद नहीं उनको आती, गोली खाकर सोते हैं|
कहने को तो इंसाँ हैं, पर आँखो से वो तोते हैं|
ऊपर वाले पर निर्भर, कितने अवसर खोते हैं|
दोष किसे दें हम "वाते", खेत हमीं ने जोते हैं|