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सब दिन नया दिन / सूरज

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रौशनी अपने गुच्छे में लपेटती है
फूल की पँखुरियों-सा ताज़ादम दिन
हो नमक धुली सुबह और बीती रात
तकरार हो / वार हो पर बची रहे इतनी
समझदारी जितना बीज-पराग रह जाता है
जाते हुए एक फूल से दूसरे फूल तक

मन तृप्त हो भूख सिमट आए अँजुरियों में
रोटी का सच्चा रंग रहे मेरी आँखो में
गवाह की तरह, करते हुए कोई भी करार

एक दिन बस एक दिन नहीं होता
वर्षों के मकड़जाल का सुनहला धागा
किसी एक दिन ही मिलता है इंतज़ार का खोया
पाया रास्ता एक दिन ही अलविदा की डगर

वर्तमान के कोई एक दिन पड़ता है
नशे में चूर वर्षों वर्ष के निचाट पर
हथौड़े की तरह