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लेखिका: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=महादेवी वर्मा]][[Category:कविताएँ]]|अनुवादक=[[Category:|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा]]}}{{KKCatKavita}}<poem>सब बुझे दीपक जला लूंघिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~क्षितिज कारा तोडकर अबगा उठी उन्मत आंधी,अब घटाओं में न रुकतीलास तन्मय तडित बांधी,धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!
सब बुझे दीपक जला लूं<br>भीत तारक मूंदते द्रगघिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा भ्रान्त मारुत पथ न पाता,छोड उल्का अंक नभ मेंध्वंस आता हरहराताउंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं <br><br>!
क्षितिज कारा तोडकर अब <br>लय बनी मृदु वर्तिकागा उठी उन्मत आंधीहर स्वर बना बन लौ सजीली, <br>अब घटाओं में न रुकती <br>फैलती आलोक सीलास तन्मय तडित बांधी, <br>झंकार मेरी स्नेह गीलीधूल की इस वीणा पर मरण के पर्व को मैं तार हर त्रण का मिला आज दीवाली बना लूं! <br><br>
भीत तारक मूंदते द्रग <br>देखकर कोमल व्यथा कोभ्रान्त मारुत पथ न पाताआंसुओं के सजल रथ में, <br>छोड उल्का अंक नभ में <br>मोम सी सांधे बिछा दींध्वंस आता हरहराता<br>थीं इसी अंगार पथ मेंउंगलियों की ओट स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में सुकुमार सब सपने बचा उनको सुला लूं!<br><br>
लय बनी म्रदु वर्तिका<br>हर स्वर बना बन लौ सजीली,<br>फैलती आलोक सी <br>झंकार मेरी स्नेह गीली <br>इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!<br><br> देखकर कोमल व्यथा को <br>आंसुओं के सजल रथ में,<br>मोम सी सांधे बिछा दीं<br>थीं इसी अंगार पथ में<br>स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं!<br><br> अब तरी पतवार लाकर <br>तुम दिखा मत पार देना,<br>आज गर्जन में मुझे बस <br>एक बार पुकार लेना<br>ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूं!<br>आज दीपक राग गा लूं!<br><br/poem>
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