भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब लोक में उचारुंगा / कमलानंद सिंह 'साहित्य सरोज'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:15, 15 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = कमलानंद सिंह 'साहित्य सरोज' }} <poem> सब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब लोक में उचारुंगा।
मेरो प्रान तेरो हाथ तेरो प्रान मेरो हाथ राखि
यह वीस वीसे प्रन तो निवाहूंगा।।
होस में रहूँ ना चाहे होस रहूंगा
हम सकल दशा में सांची वैन परचारुंगा।
सुकवि सरोज उपकार मे करुंगा तेरो प्रान दे हमारो
तेरो प्रान को उबारुंगा।