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सभा-गाछी / राजकमल चौधरी

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सभागाछीमे आब लोक नहि
बैसत माछी
भन्-भन् करैत, नहुए गबैत मा-मा
छी-छी
गाछी!
पाँजि, मूल, वंशक हृत्पिंडपर बैसल
बसाओल गेल
सभा-गाछीमे-
आब अन्तर नहि रहि जायत लोक, आ
माछीमे!

(मिथिला-मिहिर: 5.12.65)