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सभी की सोच अलग है अलग दिशाओं में / अनिरुद्ध सिन्हा

सभी की सोच अलग है अलग दिशाओं में
ये कैसे लोग हैं शामिल तेरी सभाओं में

अभी ज़मीं पे अँधेरा है आसमां चुप है
कहीं तो चांद भी होगा इन्हीं घटाओं में

कहाँ से आई गुलाबों की ज़ेहन में खुशबू
किसी का हुस्न महकता है इन हवाओं में

तमाम लोग अकेले खड़े हैं महफ़िल में
कहीं तो खोट छुपी है तेरी वफ़ाओं में

ये शहर कितना ख़तरनाक हो गया यारो
चलो कि बैठ रहें जाके अब गुफाओं में