Last modified on 15 जुलाई 2010, at 04:35

सभ्यता / ओम पुरोहित ‘कागद’

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:35, 15 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>सभ्य पद चापों से जरा हटकर सड़क के किनारे किसी गंदे नाले में अपन…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सभ्य पद चापों से
जरा हटकर
सड़क के किनारे
किसी गंदे नाले में
अपना ही चेहरा देख कर,
कितने असभ्य हो जाते हैं हम।
अप्ने ही चेहरे पर
पेशाब कर
अपना ही अक्स मिटा डालते हैं।
अहंकार की डकार ले
उलटे पांव
जेब में हाथ डाल
पुन:
सभ्य पद चापों में,
अपनी पदध्वनि
मिला कर हंसते हैं
अपने हम सफ़र की_
आंख में लोग कीचड़ को देख कर।
.... और कितनी शान से
मिलाते हैं हम
‘वे हाथ ’
मूंछों पर ताव देकर
अपने राह चलते अजीज से।