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|रचनाकार=जहीर कुरैशी
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*[[जब भी औरत ने अपनी सीमा रेखा को पार किया / जहीर कुरैशी]]
*[[जुलूसों में मिले श्रीहीन चेहरे / जहीर कुरैशी]]
*[[वे अपने भाषण द्वारा नफ़रत फैलाने आते हैं / जहीर कुरैशी]]
*[[घर के अंतिम बरतनों को देखकर बेचकर / जहीर कुरैशी]]
*[[विडंबना में भी उसी को भला समझता रहा / जहीर कुरैशी]]
*[[व्यक्त होने की बहुत क्रोध ने तैयारी की / जहीर कुरैशी]]