Last modified on 27 सितम्बर 2015, at 22:48

समझदार हाथी: समझदार चींटी / दिविक रमेश

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 27 सितम्बर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक ओर से आई चींटी
ओर उधर से आया हाथी
दोनों में अब टक्कर होगी
सोच रहे जंगल के साथी।

चींटी बोलेगी -हाथी तू
कितना मोटू, कितना थुलथुल
हाथी बोलेगा-चींटी तू
कितनी पिद्दी कितनी मरियल।

आखिर आग लगा रखी थी
दोनों के ही मन में सबने
छोटे ओर बड़े का उनमें
जहर भरा था मिल कर सब ने।

आज लड़ाई इन दोनों की
सब मिल कर देंखेंगे भाई
सोच रहे थे जंगली साथी
क्या हमने है चाल चलाई!

तभी सामने आ हाथी ने
कहा, ’कहो कैसे हो चींटी
घर में सब कुशल तो है भई
दीखी नहीं दिनों से चींटी?’

प्यार-भरा व्यवहार देखकर
चींटी की आँखें भर आईं,
’दया तुम्हारी ही है हाथी’
कहकर यों चींटी मुस्काई।
‘ओर सुनाओ तुम कैसे हो
पहले से दिखते हो दुबले?’
सुन कर हँसा जोर से हाथी,
‘कहाँ अरे हम दुबले-पतले?

कोशिश तो करते हैं कितनी
होता नहीं मोटापा कम
थुलथुल मोटू से दिखते हैं
हमें यही बस खाता गम!’

‘अरे नहीं, यह तो सेहत हैं
इस पर कैसा दुख ओर गम
देखो तो कैसे मरियल ओर
पिद्दी से दिखते हॆं हम!’

प्रेमभाव से बातें करते
निकल गए चींटी ओर हाथी
पीछे रह गए मुँह लटकाये
जंगल के सब बुद्धू साथी।