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समझ में उसकी ,ये बात आएगी कभी न कभी / अतुल अजनबी

समझ में उसकी ,ये बात आएगी कभी न कभी
चढ़ी नदी तो उतर जायेगी कभी न कभी

ख़मोश रह के सहा है हरेक ज़ुल्म तेरा
यही ख़मोशी गज़ब ढाएगी कभी न कभी

लाख ऊँचाई पे उड़ता हो परिंदा लेकिन
दाना दिखते ही ज़मीं पर वो उतर आता है

लाख मजबूत से मज़बूत सहारा दीजे
झूठ सच्चाई की दीवार से गिर जाता है

सर्द मौसम की हवाओं से लड़ें हम कब तक
अपना सूरज भी तो किरदार से गिर जाता है