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समन्दर और मैं / अरुण कुमार नागपाल

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समन्दर किनारे पहुँच
जब मैं इसमें से उठती
लहरों को देखता हूँ
तो इसकी शान्ति को अपने
हृदय में उतार लेना चाहता हूँ
और सीपियों को उठा-उठाकर
सोचता हूँ
अपनी बीती ज़िन्दगी के बारे में
और दिल मेरा हो जाता है
कण-कण
किनारे पर पड़ी रेत की तरह