Last modified on 13 मार्च 2018, at 17:41

समय इलज़ाम कुछ लेता नहीं है / रंजना वर्मा

समय इल्ज़ाम कुछ लेता नहीं है
किसी के वास्ते रुकता नहीं है
 
नदी बहती है पर्वत से निकल कर
समन्दर तो कभी बढ़ता नहीं है
 
ये मौसम बेवजह कब है बदलता
किसी की बेरुखी सहता नहीं है

हमेशा हुस्न का चर्चा है होता
कहीं भी इश्क़ का चर्चा नहीं है

जरा सा खिड़कियों से झाँक देखो
हवा का कोई भी झोंका नहीं है

बरसते देर से बादल यहाँ पर
मगर आँगन कोई भीगा नहीं है

लगी है याद तड़पाने तुम्हारी
बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं है