भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय की गति / श्वेता राय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समय की गति बदलती जब,पलट हर दाँव जाते हैं॥
पता चलता नहीं कब सुख,,उलट कर पाँव जाते हैं।

सुहानी भोर की किरणें, चमक लेकर नहीँ उगती।
सुनहरी सांझ की लाली, दमक देकर नहीं बुझती॥
गले मिलने बजारों से, बढ़े सब गाँव जाते हैं।
समय की गति बदलती जब, पलट हर दाँव जाते हैं॥
पता चलता नही कब ...

कहीं फीकी हुई होली, कहीं मद्धम दिवाली है।
कि रहते साथ सब फिर भी, मिले कोई न खाली है॥
ख़ुशी की चाह में भटके, नये सब ठाँव जाते हैं।
समय की गति बदलती जब, पलट हर दाँव जाते हैं॥
पता चलता नही कब सुख...

नयन से बात नयनों की, पुरानी हो गई शायद।
जियेंगें साथ जन्मों तक, कहानी हो गई शायद॥
लिये सब देह की चाहत, पलक की छाँव जाते हैं।
समय की गति बदलती जब, पलट हर दाँव जाते हैं॥
पता चलता नहीं कब सुख...