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समय के तेवर बदलने का पहर है / नीना कुमार

समय के तेवर बदलने का पहर है
लड़खड़ाते पग संभलने का पहर है

रुस्वाइयों के समंदर से उभर कर
धूप में रेगों पे चलने का पहर है

हयात ख्वाबीदा अंधेरों में सोई है
जुगनू-ए-अरमाँ मचलने का पहर है

चिंगारियों ने उड़ कर हवा से है कहा
नए ज़लज़लों के उबलने का पहर है

बोलता है कौन भीतर पत्थरों के
खामोशियों की रात ढलने का पहर है

गिरफ्त खौफ़ में बेदम है ज़िन्दगी
'नीना' अब अंधेरों को निगलने का पहर है