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समय से भिड़ने के लिए / सरोज परमार

मौसम में उमस है
हवा में साज़िशें
फ़िज़ा में घुल गया वहशियाना रंग
मन की हरियाली को
निगल रहा अकेला पन
समय से भिड़ने के लिए
जो शब्द जुटाए थे
बामशक्कत बचाए थे
उन्हें पैना करो
कल जब सपने टँग जाएँगे
सलीब पर
शब्द की धार ही
काटेगी हवा को.