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समाधान / चिराग़ जैन

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:25, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (चिराग जैन की कविता)

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बहुत समझदार हो तुम!
जब कभी
उदासी का आँचल ओढ़कर
जवान होने लगता है
मेरा कोई दर्द
तो चुपचाप
बिना किसी शोर-शराबे के
कंधा देकर
…पहुँचा आते हो उसे
वहाँ
…जहाँ से लौट नहीं पाया कोई
आज तक!