http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4_/_%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%88&feed=atom&action=historyसमाप्त / तुलसी पिल्लई - अवतरण इतिहास2024-03-29T11:09:52Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4_/_%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%88&diff=236618&oldid=prevRahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी पिल्लई |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2017-09-16T09:21:42Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी पिल्लई |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
मैंने<br />
एक महान कार्य किया है<br />
उस सुनहरी<br />
चंचल मछली को<br />
जिसकी आँखे<br />
कथाई-सी थी<br />
और शरीर <br />
चितकाबरा<br />
जो मेरे उजड़े<br />
कमरे का<br />
रौनक बढ़ाया करती थी<br />
और उन तमाम<br />
बोझिल करने वाली<br />
परेशानियों से<br />
राहत पहुँचाया करती थी<br />
अपनी दिलकश<br />
अदाओ से,<br />
मेरा<br />
उसंर मन मोह लेती थी<br />
आज मैंने <br />
उसे काँच के <br />
पिन्जरे से<br />
ले जाकर<br />
विशाल समुद्र में<br />
आजाद कर दिया<br />
यह सोचे बिना<br />
कि अब <br />
मेरे कमरे की<br />
बस्ती और रौनक<br />
समाप्त हो जाऐगे<br />
और जीवन विरान।<br />
</poem></div>Rahul Shivay