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समाप्त / तुलसी पिल्लई

मैंने
एक महान कार्य किया है
उस सुनहरी
चंचल मछली को
जिसकी आँखे
कथाई-सी थी
और शरीर
चितकाबरा
जो मेरे उजड़े
कमरे का
रौनक बढ़ाया करती थी
और उन तमाम
बोझिल करने वाली
परेशानियों से
राहत पहुँचाया करती थी
अपनी दिलकश
अदाओ से,
मेरा
उसंर मन मोह लेती थी
आज मैंने
उसे काँच के
पिन्जरे से
ले जाकर
विशाल समुद्र में
आजाद कर दिया
यह सोचे बिना
कि अब
मेरे कमरे की
बस्ती और रौनक
समाप्त हो जाऐगे
और जीवन विरान।