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"सम्पादक की होली / बेढब बनारसी" के अवतरणों में अंतर

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1.
 
पोते 'पोमेड' मले मुख 'पौडर' ऐनक आँख चढ़ी 'गजनैनी'
 
आननपै करके 'करचीफ' धरे, जनु जर्म बचावत जैनी
 
टेढ़ा करै मुख ऐसा बनाय के भोजपुरी मनो खात है खैनी
 
कूदती ये स्कूल चलै 'मृग-गामिनी' भामिनी 'मेढकबैनी' 
 
 
नोट: जैनी = जैन धर्म मानने वाले
 
  
2.
+
आफिस में कंपोजीटर कापी कापी चिल्लाता है
यह भात सा गात है फूला हुआ, अथवा पकी रोटी तंदूर की है  
+
कूड़ा-करकट रचनाएँ पढ़, सर में चक्कर आता है  
जग जाता जहान सुने बरबैन, सुबानी मनो तमचूर की है
+
बीत गयी तिथि, पत्र न निकला, ग्राहकगण ने किया प्रहार
कच काले से बाल के हैं ये बढ़े, कि यह लंबी सी लूम लंगूर की है
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तीन मास से मिला न वेतन, लौटा घर होकर लाचार
मुख पे हैं मुहासे ये लाल घने मनो लीची मुजफ्फरपूर की है
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बोलीं बेलन लिए श्रीमती, होली का सामान कहाँ,
+
छूट गयी हिम्मत, बाहर भागा, मैं ठहरा नहीं वहाँ
नोट; जग जाता = जाग जाता
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चुन्नी, मुन्नी, कल्लू, मल्लू, लल्लू, सरपर हुए सवार,
तमचूर = मुर्गा 
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सम्पादकजी हाय मनायें कैसे होली का त्यौहार
  
 
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23:31, 20 मई 2010 का अवतरण


आफिस में कंपोजीटर कापी कापी चिल्लाता है
कूड़ा-करकट रचनाएँ पढ़, सर में चक्कर आता है
बीत गयी तिथि, पत्र न निकला, ग्राहकगण ने किया प्रहार
तीन मास से मिला न वेतन, लौटा घर होकर लाचार
बोलीं बेलन लिए श्रीमती, होली का सामान कहाँ,
छूट गयी हिम्मत, बाहर भागा, मैं ठहरा नहीं वहाँ
चुन्नी, मुन्नी, कल्लू, मल्लू, लल्लू, सरपर हुए सवार,
सम्पादकजी हाय मनायें कैसे होली का त्यौहार