http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%AF%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A6_%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80_/_%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2&feed=atom&action=historyसय्यद मियां की टांगी / लक्ष्मीकान्त मुकुल - अवतरण इतिहास2024-03-28T17:04:01Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%AF%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A6_%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80_/_%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2&diff=252310&oldid=prevSharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2018-08-03T10:21:36Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल<br />
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|संग्रह=<br />
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<poem><br />
कमरे की दीवाल पर <br />
खूंटियों के सहारे टंगी<br />
टांगी को बहुत गौर से निरखते हैं सय्यद मियां <br />
जिसे उनके वंश के नवाब पुरखे <br />
शिकार करने साथ ले जाते थे<br />
सवार होकर अरबी घोड़े की पीठ पर<br />
अपने सिपहसलारों के साथ <br />
<br />
पुरखों की निशानी को बड़ी <br />
जतन से संजोते हैं वे <br />
पिटवा खालिस लोहे की बनी टांगी<br />
जिसमे लगा है सखुवे का बेंट<br />
जिसे देखकर याद करते हैं अपने बुजुर्गों की वीरता <br />
कि अंग्रेजों से कैसे मुकाबिल होते थे वे लोग <br />
कैसे करते थे लूटेरों का सामना <br />
अन्याय से लड़ने का कैसे अपनाते थे हौसला <br />
<br />
आँगन में उगे अमरूद की गांछों को <br />
दरवाजों की फांक से दिखती टांगी से <br />
कटने का अब कोई भय नहीं होता <br />
पिंजड़े का मिट्ठू सुग्गा उड़कर<br />
जाना चाहता है टांगी पास <br />
छतों पर टिक-टिक कराती गिलहरियाँ <br />
खिलवाड़ करना चाहती है टांगी से <br />
<br />
टांगी वाले कमरे से कुछ दूर बैठी <br />
सय्यदा मोहतरमा पका रही होती है रसोई में <br />
अनोखे पकवान <br />
चींटियों के लिए छिड़क रही होती है अंजुरी भर चीनी <br />
घर के मुंडेर पर आयी चिड़ियों को <br />
चुगा रही होती है नवान्न के दाने <br />
बधना से जल ढरकाकर <br />
बुझा रही होती है उन कौवों की प्यास <br />
जो सुनाते रहते हैं संसार भर की अच्छी खबरें <br />
जिसे सुनकर बजती है घर-घर में कांसे की थाली <br />
गाये जाते हैं गीत बधावे के <br />
दरवाजे से आता है मेहमान का आने का सगुन <br />
<br />
आँगन में रोपे तुलसी पौधे के समक्ष<br />
मांगती हैं बारहां मन्नतें <br />
तिलावत पर करती हैं अनगिनत दुआयें <br />
कि हंसते खिलखिलाते लौट आये सबके बच्चे <br />
सबकी बेटियों की हाथों में सजे खुशियों की मेहंदी <br />
सबके चहरे पर छा जाये सावन के घुमड़ते बादल <br />
गाँव की पगडंडियों की तरह शांत रहे हर का अंतरम <br />
दीवाल की जानिब देखकर सोचते हैं सय्यद मियां <br />
कि अपने भोथरे धार से <br />
कैसे काट पाएगी टांगी<br />
दुनियां-जहान के दुख-दलिदर वाले दिनों को<br />
</poem></div>Sharda suman