सरकै अँग अँग अबै गति सी मिसि की रिसकी सिसकी भरती ।
करि हूँ हूँ हहा हमसो हरिसो कै कका की सोँ मो करको धरती ।
मुख नाक सिकोरि सिकोरति भौँहनि तोष तबै चित को हरती ।
चुरिया पहिरावत पेखिये लाल तौ बाल निहाल हमै करती ।
तोष का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।