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सरग बांदया रे साधू झोपड़ा / निमाड़ी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    सरग बांदया रे साधू झोपड़ा,
    आरे कलु म कीया अधवारा

(१) घर बांदया रे घर की नीव नही,
    आरे नही लाग्या सुतार
    लावो घर के पारछी
    घर बांदया कैलाश...
    सरग बांदया...

(२) घर ऊचा धारण नीचा,
    दियो जड़ रे आकाश
    सागर ताक जड़ावियाँ
    जाको वस्तर अपार...
    सरग बांदया...

(३) घर छाया घर ना गले,
    चट-घट करी पास
    नीरगुण पाणी झेलीयाँ
    वो घर का रे माय...
    सरग बांदया...

(४) घर बांदया रे घर की नीव नही,
    घर को रची गयो नाम
    जहाँ सींगा न जलम लियो
    दल्लू आया मेजवान...
    सरग बांदया...