भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सराबी सिलसिले अच्छे लगेंगे / शीन काफ़ निज़ाम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम |संग्रह=सायों के साए में / शीन का…)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
 
|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
|संग्रह=सायों के साए में / शीन काफ़ निज़ाम  
+
|संग्रह=सायों के साए में / शीन काफ़ निज़ाम; रास्ता ये कहीं नही जाता / शीन काफ़ निज़ाम 
 
}}
 
}}
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
{{KKCatGhazal‎}}‎

14:02, 15 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

सराबी सिलसिले अच्छे लगेंगे
यूँ ही से वास्ते अच्छे लगेंगे

गली कूचे बड़े अच्छे लगेंगे
ये मंज़र दूर से अच्छे लगेंगे

अभी सूरज हमारे सामने है
ये किस्से दिन ढले अच्छे लगेंगे

निगाहों में अभी हैं ख़्वाब रोशन
अभी तो रतजगे अच्छे लगेंगे

हमारी ज़िंदगी की दास्ताँ में
तुम्हें कुछ वाकये अच्छे लगेंगे

इन्हें महफूज़ रखना कल तुम्हें भी
नविश्ते आज के अच्छे लगेंगे

हमारे पास क्या शोहरत, न दौलत
उन्हें हम किसलिए अच्छे लगेंगे

ज़रा दो-चार सदमे और सह लो
हमारे फ़लसफ़े अच्छे लगेंगे