सरासर झूठ बोले जा रहा है
हुंकारी भी अलग भरवा रहा है
ये बंदर नाचता बस दो मिनट है
ज्यादा पेट ही दिखला रहा है
दलालों ने भी ये नारा लगाया
हमारा मुल्क बेचा जा रहा है
मैं उस बच्चे पे हंसता भी न कैसे
धंसा कर आंख जो डरवा रहा है
तुझे तो ब्याज की चिन्ता नही है
है जिसका मूल वो शरमा रहा है
सुना है आजकल तेरे शहर में
जो सच्चा है वही घबरा रहा है