भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरासर झूठ बोले जा रहा है / प्रताप सोमवंशी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:19, 26 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सोमवंशी }} Category:ग़ज़ल सरासर झूठ बोले जा रहा है<br> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरासर झूठ बोले जा रहा है
हुंकारी भी अलग भरवा रहा है

ये बंदर नाचता बस दो मिनट है
ज्यादा पेट ही दिखला रहा है

दलालों ने भी ये नारा लगाया
हमारा मुल्क बेचा जा रहा है

मैं उस बच्चे पे हंसता भी न कैसे
धंसा कर आंख जो डरवा रहा है

तुझे तो ब्याज की चिन्ता नही है
है जिसका मूल वो शरमा रहा है

सुना है आजकल तेरे शहर में
जो सच्चा है वही घबरा रहा है