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सर्द सन्नाटा / मीना चोपड़ा

सुबह के वक़्त
आँखें बंद कर के देखती हूँ जब
तो यह जिस्म के कोनो से
ससराता हुआ निकल जाता है
सूरज की किरणे चूमती हैं
जब भी इस को
तो खिल उठता है यह
फूल बनकर
और मुस्कुरा देता है
आँखों में मेरी झाँक कर

सर्द सन्नाटा

कभी यह जिस्म के कोनो में
ठहर भी जाता है
कभी गीत बन कर
होठों पे रुक भी जाता है
और कभी
गले के सुरों को पकड़
गुनगुनाता है
फिर शाम के
रंगीन अँधेरों में घुल कर
सर्द रातों में गूँजता है अक्सर
सर्द सन्नाटा

मेरे करीब
आ जाता है बहुत
बरसों से मेरा हबीब
सन्नाटा