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सर्द हो जाएगी यादों की चिता मेरे बाद / साग़र पालमपुरी

सर्द हो जाएगी यादों की चिता मेरे बाद

कौन दोहराएगा रूदाद—ए—वफ़ा मेरे बाद


बर्ग—ओ—अशजार से अठखेलियाँ जो करती है

ख़ाक उड़ाएगी वो गुलशन की हवा मेरे बाद

संग—ए—मरमर के मुजसमों को सराहेगा कौन

हुस्न हो जाएगा मुह्ताज—ए—अदा मेरे बाद


प्यास तख़लीक़ के सहरा की बुझेगी कैसे

किस पे बरसेगी तख़ैयुल की घटा मेरे बाद !


मेरे क़ातिल से कोई इतना यक़ीं तो ले ले

क्या बदल जाएगा अंदाज़—ए—जफ़ा मेरे बाद ?


मेरी आवाज़ को कमज़ोर समझने वालो !

यही बन जाएगी गुंबद की सदा मेरे बाद


आपके तर्ज़—ए—तग़ाफ़ुल की ये हद भी होगी

आप मेरे लिए माँगेंगे दुआ मेरे बाद


ग़ालिब—ओ—मीर की धरती से उगी है ये ग़ज़ल

गुनगुनाएगी इसे बाद—ए—सबा मेरे बाद


न सुने बात मेरी आज ज़माना ‘साग़र’!

याद आएगा उसे मेरा कहा मेरे बाद


तख़लीक़—सृजन; तख़ैयुल—कल्पना; तर्ज़—ए—तग़ाफ़ुल=उपेक्षा का ढंग