सर अदब से झुकाओ मिलो प्यार से
चाहिए जो भी, माँगो वो करतार से
ग़म के सैलाब में कश्तिए ज़िन्दगी
चलती बढती रहे दिल के पतवार से
पा रहे हैं शहादत जो उनके लिए
क्या सिला माँगेगा कोई सरकार से
प्यार में तो कोई शर्त होती नहीं
पेश आना मुहब्बत से ही यार से
छत नहीं प्यार की 'भवि' कहीं देख लो
आजकल घर बनें सिर्फ़ दीवार से