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सर पर नहीं है बर सर-ए-दरबार गिर गई / जावेद क़मर

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सर पर नहीं है बर सर-ए-दरबार गिर गई।
आलम पनाह आप की दस्तार गिर गई।

जिस के थे ज़ेर-ए-साय मुहब्बत पसंद लोग।
कब की मुहब्बतों की वह दीवार गिर गई।

बच्चों की अपने भूक मिटाने के वास्ते।
क़दमों में मालदार के लाचार गिर गई।

ये हाल उस का कर दिया मेरी जुदाई ने।
बिस्तर पर हो के देखिए बीमार गिर गई।

वो शख़्स सूरमा था तअज्जुब की बात है।
मैदाँ में जिस के हाथ से तलवार गिर गई।

कश्ती में बैठे लोगों को आई ख़ुदा की याद।
जब नाख़ुदा के हाथ से पतवार गिर गई।

बेज़ार लोग आने लगे इस से अब 'क़मर' ।
जल्दी ही ये सुनोगे कि सरकार गिर गई।