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सलाम फूलन देवी / बाल गंगाधर 'बागी'

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फूलन तुम्हारे गोलियों की, आवाज सुनाई देती है
दरिंदों के बीच घिरी, जब कोई लड़की होती है
गोली बम बारूद उसकी, आंखांे में उमड़ जाते हैं
मर्यादा उसकी सरे आम, नीलाम जब भी होती है
नंगा घुमाने वालों को, टुकड़ों में कैसे काट दिया
तुमसे सदियों की क्रांति की, आवाज सुनाई देती है
आज तुम्हारे क्रांति की, तलवारें हैं तैयार जहाँ
ज्वाला मंे भड़की आज, ललकार सुनाई देती है

दलित गरीब अबला, असहाय समझते लोग क्यों
दुर्लभ लाचार बनकर नंगी, क्यों घुमाई जाती हैं?
इसीलिए तुम्हारे गोली से, क्रांति की ज्वाला भड़की
अब समन्दर की लहरों सी, अशांत दिखाई देती है

चम्बल के बीहड़ में, दौड़ा के वहशियों को मारा
हर माँ बहने तेरे अंदर, जांबाज दिखाई देती है
‘बाग़ी’ क्रांति की एक नहीं, हर हाथों में बंदूकें हैं
हर लड़की ज्वालमुखी, उद्गार दिखाई देती है