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सलीब / निकानोर पार्रा / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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अभी या कभी
आँखों में आँसू भरे
लौटूँगा मैं सलीब की खुली बाँहों में ।

कभी नहीं,
जल्द ही मैं गिर पड़ूँगा
घुटने टेककर सलीब के क़दमों में ।

यह मुश्किल है
सलीब को न अपनाना :
देखो, कैसे वह मुझे बाँहों में ले लेती है ?

यह आज नहीं होगा
कल भी नहीं
और परसों भी नहीं
लेकिन होकर रहेगा जैसा कि होना है ।

फ़िलहाल सलीब
एक हवाई जहाज़ है
वह औरत है टाँगे पसारे हुए ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य