Last modified on 22 जुलाई 2011, at 20:18

सल्तनत / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

ज़हर क्यों उगलते हैं बीज
जब पनपते हैं पौधों की
कोख में
ज़हर होता है
फिर भी तितलियां भंवरें
उस ज़हर के आस-पास का
मद चाट-चाट कर
मदमस्त हो जीते हैं।
झूमते हैं उछलते हैं भंवरे
कूदती हैं तितलियां
फरफराती हुई
ज़िंदगी काट
लेती हैं
काश
भंवरें और तितली हो कर
बीज के ज़हर को नहीं
आसपास के
मद को पीकर जी सकूं।