भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सहयात्री / हरीश करमचंदाणी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:16, 25 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>उस पार जिंदगी हो कि न हो पर यह तय हैं इस पार जिंदगी आ सकती हैं तु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस पार जिंदगी हो
कि न हो
पर यह
तय हैं
इस पार जिंदगी
आ सकती हैं
तुम चाहो तो