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"सहस्राब्द से क्रीड़ारत वह / जीवनानंद दास / सुरेश सलिल" के अवतरणों में अंतर
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असीरियाई खड़ा हुआ मृत-म्लान । | असीरियाई खड़ा हुआ मृत-म्लान । | ||
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चुक गए जीवन के सब लेन-देन, | चुक गए जीवन के सब लेन-देन, | ||
"याद है न !" याद दिलाई उसने, | "याद है न !" याद दिलाई उसने, | ||
याद मुझे आई, बस्स ’वनलता सेन’। | याद मुझे आई, बस्स ’वनलता सेन’। | ||
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19:04, 11 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
सहस्राब्द से क्रीड़ारत वह ऐसे
जैसे अंधकार में जुगनू :
चारों ओर पिरामिड फैले —
ताबूतों की गन्ध आ रही :
बालि द्वीप पर हंसे ज्योत्सना —
यहाँ-वहाँ छाया खजूर की
क्षत-विक्षत स्तम्भ के सदृश :
असीरियाई खड़ा हुआ मृत-म्लान ।
हमारी देहों से ममी की गन्ध —
चुक गए जीवन के सब लेन-देन,
"याद है न !" याद दिलाई उसने,
याद मुझे आई, बस्स ’वनलता सेन’।