भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सहिहो न एती ढिठाई / कमलानंद सिंह 'साहित्य सरोज'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:39, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = कमलानंद सिंह 'साहित्य सरोज' }} <poem> सह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सहिहो न एती ढिठाई ( लाल तेरी ) ॥
कहि कहि हारि गई सब गोपी, तुम न तजी बरिआई ।
जित तित रारि करत सबही सों, बरबस बात बढ़ाई ॥
नीति रीति समझत नहिं एको, करत काज मन भाई ।
चलहु आज जसुदा ढिग तेरी, कहिहौं सबै बुराई ।
अबही अबिर लगाइ भली विधि, जिय की साध मिटाई ।
अ¡चरा गहि कटि को झिकझोरी, अ¡गिया हू मसकाई ॥
हँसि हँसि बात करहु जनि मोसों, जैहे बिगड़ि कन्हाई ।
जब ‘सरोज’ सूने धरि पैहों, चलिहैं नहिं चतुराई ॥