सही जबले पीड़ा सहाउर रही
रही छिप के मौसम जे बाउर रही।
भूलवना अन्हरिया में लागो भले
रोशनी जब मिली, बात आउर रही।
काँट कतनो बिछावे केहू राह में
मत रूकीं राह में, जीत राउर रही।
जे न बूझे के चाही मरम ने हके
मीठ बोली मगर तीत माहुर रही।
जबले नेहिया के बदरी ना बरसी इहाँ
बीआ जामी ना, खाली सिराउर रही।