भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँकल / रजनी तिलक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:07, 14 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रजनी तिलक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चारदीवारी की घुटन
घूँघट की ओट
सहना ही नारीत्व तो
बदलनी चाहिए परिभाषा।

परम्पराओं का पर्याय
बन चौखट की साँकल
है जीवन-सार
तो बदलना होगा जीवन-सार।