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स्त्री वेद पढ़ती है
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किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
 
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रचनाकार: [[दिनकर कुमार]]
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रचनाकार: [[राहत इन्दौरी]]
 
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स्त्री वेद पढ़ती है
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किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
उसे मंच से उतार देता है
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अभी बदलता है माहौल, अल्लाह बोल
धर्म का ठेकेदार
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कहता है—
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जाएगी वह नरक के द्वार
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यह कैसा वेद है
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कैसे साथी, कैसे यार, सब मक्कार
जिसे पढ़ नहीं सकती स्त्री
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सबकी नीयत डाँवाडोल, अल्लाह बोल
जिस वेद को रचा था
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स्त्रियों ने भी
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जो रचती है
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मानव समुदाय को
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उसके लिए कैसी वर्जना है
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या साज़िश है
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जैसा गाहक, वैसा माल, देकर ताल
युग-युग से धर्म की दुकान
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कागज़ में अंगारे तोल, अल्लाह बोल
चलाने वालों की साज़िश है
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बनी रहे स्त्री बांदी
+
जाहिल और उपेक्षिता
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डूबी रहे अंधविश्वासों
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व्रत-उपवासों में
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उतारती रहे पति परमेश्वर
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की आरती और
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ख़ून चूसते रहे सब उसका
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अरुंधतियों को नहीं
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हर पत्थर के सामने रख दे आइना
रोक सकेंगे निश्चलानंद
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नोच ले हर चेहरे का खोल, अल्लाह बोल
वह वेद भी पढ़ेगी
+
 
और रचेगी
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दलालों से नाता तोड़, सबको छोड़
नया वेद ।
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भेज कमीनों पर लाहौल, अल्लाह बोल
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इन्सानों से इन्सानों तक एक सदा
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क्या तातारी, क्या मंगोल, अल्लाह बोल
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शाख-ए-सहर पे महके फूल अज़ानों के
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फेंक रजाई, आँखें खोल, अल्लाह बोल
 
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11:51, 10 अप्रैल 2013 का अवतरण

किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल

रचनाकार: राहत इन्दौरी

किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
अभी बदलता है माहौल, अल्लाह बोल

कैसे साथी, कैसे यार, सब मक्कार
सबकी नीयत डाँवाडोल, अल्लाह बोल

जैसा गाहक, वैसा माल, देकर ताल
कागज़ में अंगारे तोल, अल्लाह बोल

हर पत्थर के सामने रख दे आइना
नोच ले हर चेहरे का खोल, अल्लाह बोल

दलालों से नाता तोड़, सबको छोड़
भेज कमीनों पर लाहौल, अल्लाह बोल

इन्सानों से इन्सानों तक एक सदा
क्या तातारी, क्या मंगोल, अल्लाह बोल

शाख-ए-सहर पे महके फूल अज़ानों के
फेंक रजाई, आँखें खोल, अल्लाह बोल