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ये अनाज की पूलें तेरे काँधे झूलें
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समूहगान</div>
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रचनाकार: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]
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रचनाकार: [[शैलेन्द्र]]
 
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ये अनाज की पूलें तेरे काँधे झूलें
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क्रान्ति के लिए जली मशाल
तेरा चौड़ा छाता
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क्रान्ति के लिए उठे क़दम !
रे जन-गण के भ्राता
+
 
शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़ते
+
भूख के विरुद्ध भात के लिए
भू-स्वामी, निर्माता !
+
रात के विरुद्ध प्रात के लिए
कीच, धूल, गन्दगी बदन पर
+
मेहनती ग़रीब जाति के लिए
लेकर ओ मेहनतकश!
+
हम लड़ेंगे, हमने ली कसम !
गाता फिरे विश्व में भारत
+
 
तेरा ही नव-श्रम-यश !
+
छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ
तेरी एक मुस्कराहट पर
+
बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ
वीर पीढ़ियाँ फूलें ।
+
किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँ
ये अनाज की पूलें
+
लूट का यह राज हो ख़तम !
तेरे काँधें झूलें !
+
 
इन भुजदंडों पर अर्पित
+
तय है जय मजूर की, किसान की
सौ-सौ युग, सौ-सौ हिमगिरी
+
देश की, जहान की, अवाम की
सौ-सौ भागीरथी निछावर
+
ख़ून से रंगे हुए निशान की
तेरे कोटि-कोटि शिर !
+
लिख रही है मार्क्स की क़लम !  
ये उगी बिन उगी फ़सलें
+
तेरी प्राण कहानी
+
हर रोटी ने, रक्त बूँद ने
+
तेरी छवि पहचानी !
+
वायु तुम्हारी उज्ज्वल गाथा
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सूर्य तुम्हारा रथ है,
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बीहड़ काँटों भरा कीचमय
+
एक तुम्हारा पथ है ।
+
यह शासन, यह कला, तपस्या
+
तुझे कभी मत भूलें ।
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ये अनाज की पूलें
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तेरे काँधे झूलें !  
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14:02, 30 अगस्त 2013 का अवतरण

समूहगान

रचनाकार: शैलेन्द्र

क्रान्ति के लिए जली मशाल
क्रान्ति के लिए उठे क़दम !

भूख के विरुद्ध भात के लिए
रात के विरुद्ध प्रात के लिए
मेहनती ग़रीब जाति के लिए
हम लड़ेंगे, हमने ली कसम !

छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ
बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ
किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँ
लूट का यह राज हो ख़तम !

तय है जय मजूर की, किसान की
देश की, जहान की, अवाम की
ख़ून से रंगे हुए निशान की
लिख रही है मार्क्स की क़लम !