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धूप की क़िस्में</div>
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छोटा सा बलमा मोरे</div>
  
 
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रचनाकार: [[राधावल्लभ त्रिपाठी]]
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रचनाकार: [[कांतिमोहन ’सोज़’]]
 
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धूप की कई क़िस्में होती हैं
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छोटा सा बलमा मोरे
गुनगुनी धूप
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आँगना में गिल्ली खेले I
गुलाबी धूप
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नम धूप
+
तीखी धूप
+
बदन सहलाती मुलायम धूप
+
  
धूप के कई रंग होते हैं
+
पनिया भरन जाऊँ वो कहे
सुनहरी धूप
+
मोहे गोदी ले ले I
हल्दी के रंग की पीली धूप
+
छोटा सा बलमा मोरे
पेड़ों से छन कर आती हरी धूप
+
आँगना में गिल्ली खेले II
  
सबसे अच्छी धूप --
+
गोदी उठाऊँ तो वो
हाड़ कँपाता जाड़ा झेलते
+
यूँ कहे मोहे ले चल मेले I
ग़रीब का तन
+
छोटा सा बलमा मोरे
गरमाने के लिए
+
आँगना में गिल्ली खेले ।।
घने कोहरे को भेद कर
+
 
बाहर आने को आकुल धूप...
+
मेले ले जाऊँ तो
 +
जुल्मी कहे कहीं चल अकेले I
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छोटा सा बलमा मोरे
 +
आँगना में गिल्ली खेले ।।
 +
 
 +
कैसे बताऊँ मेरी
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जान को हैं सौ झमेले I
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छोटा सा बलमा मोरे
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आँगना में गिल्ली खेले ।।
 
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01:11, 19 नवम्बर 2014 का अवतरण

छोटा सा बलमा मोरे
Kk-poem-border-1.png

छोटा सा बलमा मोरे आँगना में गिल्ली खेले I

पनिया भरन जाऊँ वो कहे मोहे गोदी ले ले I छोटा सा बलमा मोरे आँगना में गिल्ली खेले II

गोदी उठाऊँ तो वो यूँ कहे मोहे ले चल मेले I छोटा सा बलमा मोरे आँगना में गिल्ली खेले ।।

मेले ले जाऊँ तो जुल्मी कहे कहीं चल अकेले I छोटा सा बलमा मोरे आँगना में गिल्ली खेले ।।

कैसे बताऊँ मेरी जान को हैं सौ झमेले I छोटा सा बलमा मोरे आँगना में गिल्ली खेले ।।