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आदिवासी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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रचनाकार: [[मदन कश्यप]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
ठण्डे लोहे-सा अपना कन्धा ज़रा झुकाओ
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
हमें उस पर पाँव रख कर लम्बी छलाँग लगानी है
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अपरिचित पास आओ
मुल्क को आगे ले जाना है
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बाज़ार चहक रहा है
+
और हमारी बेचैन आकाँक्षाओं के साथ-साथ हमारा आयतन भी बढ़ रहा है
+
तुम तो कुछ घटो रास्ते से हटो
+
  
तुम्हारी स्त्रियाँ कपड़े क्यों पहनती हैं
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
वे तो ऐसी ही अच्छी लगती हैं
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
तुम्हारे बच्चे स्कूल क्यों जाते हैं
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
(इसमें धर्मान्तरण की साजिश तो नहीं)
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
तुम तो अनपढ़ ही अच्छे लगते हो
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
बस, अपना यह जंगल नदी पहाड़ हमें दे दो
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सबमें अपनेपन की माया
हम इन्हें निचोड़ कर देश को आगे ले जाएँगे
+
अपने पन में जीवन आया
दुनिया में अपनी तरक्की का मादल बजाएँगे
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और यदि बचे रहे तो तुम्हें भी नाचने-गाने के लिए बुलाएँगे
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देश के लिए हम इतना सब कर रहे हैं
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तुम इतना भी नहीं कर सकते !
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तुम्हारी भाषा अब गन्दी हो गई है
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उसमें विचार आ गए हैं
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तुम्हारी सँस्कृति पथ-भ्रष्ट हो गई है
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उसमें हथियार आ गए हैं
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ख़तरनाक होती जा रही हैं तुम्हारी बस्तियाँ
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केवल हमारी दया पर बसी नहीं रहना चाहतीं
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हमने तो बहुत पहले ही सब कुछ तय कर दिया था
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तुम्हें बोलना नहीं गाना आना चाहिए
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पढ़ना नहीं नाचना आना चाहिए
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सोचना नहीं डरना आना चाहिए
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अब तुम्हीं कभी-कभी भटक जाते हो
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तुम्हें कौन-सी बानी बोलनी है
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कौन-सा धर्म अपनाना है
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किस बस्ती में रहना है
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कब कहाँ चले जाना है
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यह तय करने का अधिकार तुम्हें नहीं है
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तुम तो बस, जो हम कहते हैं वह करो
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बेकार झमेले में मत पड़ो
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हम से डरो हमारी भाषा से डरो
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हमारी सँस्कृति से डरो हमारे राष्ट्र से डरो !
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया