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जब वो मस्जिद में अदा करते हैं</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
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रचनाकार: [[इमाम बख़्श ‘नासिख’]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
जब वो मस्जिद में अदा करते हैं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
सब नमाज़ अपनी क़ज़ा करते हैं
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अपरिचित पास आओ
  
जिन की रफ़्तार के पामाल हैं हम
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
वही आँखों में फिरा करते हैं
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
तेरे घर में जो नहीं जाते क़दम
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सबमें अपनेपन की माया
क्या मेरे तलुवे जला करते हैं
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अपने पन में जीवन आया
 
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नहीं होते हैं फ़रामोश सनम
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ख़ाक हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं
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गो नहीं पूछते हरगिज़ वो मिजाज़
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हम तो कहते हैं दुआ करते हैं
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मौसम-ए-गुल में बशर हैं माज़ूर
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गुल तलक चाक क़बा करते हैं
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शाद हैं बाग़-ए-फ़ना में वो गुल
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अपनी हस्ती पे हंसा करते हैं
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चमन-ए-दहर में महबूबों से
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क्या ही अशाफ़ वफ़ा करते हैं
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गर ख़ज़ां आती है फूलों के साथ
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पर अना दिल के उड़ा करते हैं
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आज वो तेग़-ए-निगह से ‘नासिख़’
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किश्वर-ए-दिल को कटा करते हैं
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया