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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
 
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
विद्वान का ढेला</div>
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
 
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रचनाकार: [[ताद्युश रोज़ेविच]]
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
इस कविता को
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
सुला देना चाहिए
+
अपरिचित पास आओ
  
इसके पहले कि शुरू हो
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
इसका विद्वान होना
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
इसके पहले कि
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
यह कविता शुरू हो
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
इसके पहले कि
+
सबमें अपनेपन की माया
यह तारीफ़ें बटोरे
+
अपने पन में जीवन आया
किसी विस्मरण के पल में  
+
यह जीवित हो
+
 
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इसके पहले कि
+
अपनी ओर  आते शब्दों और
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आँखों की यह अभ्यस्त हो
+
 
+
इसके पहले कि
+
यह विद्वानों के उपदेश लेना
+
शुरू करे
+
 
+
गुज़रने वाले राहगीर
+
कतराकर गुज़र जाते हैं
+
कोई भी नहीं उठाता
+
वह विद्वान ढेला
+
 
+
उस ढेले के भीतर
+
एक नन्हीं-सी,
+
सफ़ेद,
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नंगी कविता
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जलती रहती है
+
 
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राख हो जाने तक ।
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+
(रचनाकाल : 2002-2003)
+
 
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया