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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
 
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
दिल्ली की तस्वीर</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
 
<div style="text-align: center;">
 
<div style="text-align: center;">
रचनाकार: [[रमेश रंजक]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
मुँह देखा आचरण यहाँ का
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
बोझिल वातावरण यहाँ का
+
अपरिचित पास आओ
झूठे हैं अख़बार यहाँ के
+
अन्धा है जागरण यहाँ का
+
घने धुँधलके में डूबी हैं सीमाएँ परिवेश की
+
यह महान नगरी है मेरे देश की
+
  
है तो राजनीति की पुस्तक
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
लेकिन कूटनीति में जड़ है
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
हर अध्याय लिखा है आधा
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
आधे में आधी गड़बड़ है
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
चमकीला आवरण यहाँ का
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
उल्टा है व्याकरण यहाँ का
+
सबमें अपनेपन की माया
शब्द-शब्द से फूट रही है गन्ध विषैले द्वेष की
+
अपने पन में जीवन आया
यह महान नगरी है मेरे देश की
+
 
+
धूप बड़ी बेशरम यहाँ की
+
चाँदी की प्यासी हैं रातें
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जीती है अधमरी रोशनी
+
सुन-सुन कर अधनंगी बातें
+
सुबहें हैं चालाक यहाँ की
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शामें हैं नापाक यहाँ की
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दोपहरी मेज़ों पर फैलाती बातें उपदेश की
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यह महान नगरी है मेरे देश की
+
 
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उजली है पोशाक बदन पर
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रोज़ी है साँवली यहाँ की
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सत्य अहिंसा के पँखों पर
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उड़ती है धाँधली यहाँ की
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नागिन-सी चलती ख़ुदगर्ज़ी
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चादर एक सैकड़ों दर्ज़ी
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बिकती है टोपियाँ हज़ारों अवसरवादी वेश की
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यह महान नगरी है मेरे देश की
+
 
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छू कर चरण भाग्य बनते हैं
+
प्रतिभा लँगड़ा कर चलती है
+
हमदर्दी कुर्सी के आगे
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मगरमच्छ आँखें मलती है
+
 
+
आदम, आदमख़ोर यहाँ के
+
रखवाले हैं चोर यहाँ के
+
जिन्हें सताती है चिन्ता कोठी के श्रीगणेश की
+
यह महान नगरी है मेरे देश की
+
 
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जिसने आधी उमर काट दी
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इधर-उधर कैंचियाँ चलाते
+
गोल इमारत की धाई छू
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उसके पाप, पुण्य हो जाते
+
 
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गढ़ते हैं कानून निराले
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ये लम्बे नाख़ूनों वाले
+
देसी होठों से करते हैं बातें सदा विदेश की
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यह महान नगरी है मेरे देश की
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया