Last modified on 30 मार्च 2013, at 19:43

साँचा:KKPoemOfTheWeek

उनये उनये भादरे

रचनाकार: नामवर सिंह

उनये उनये भादरे
बरखा की जल चादरें
फूल दीप से जले
कि झरती पुरवैया सी याद रे
मन कुयें के कोहरे सा रवि डूबे के बाद रे ।
भादरे ।

उठे बगूले घास में
चढ़ता रंग बतास में
हरी हो रही धूप
नशे-सी चढ़ती झुके अकास में
तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में ।
घास में ।