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हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी

रचनाकार: दास दरभंगवी

लोटा भर पानी दुपहर में गुड़ के संग पिला दो जी
चार शायरी लेकर मुझको मछली भात खिला दो जी

पायल कंगन कनबाली सब ले लो, ए डाक्‍टर साहेब !
किसी तरह मेरे बेटे को चंगा करो, जिला दो जी

बरसों से पहना करते हैं वही एक पतलून-कमीज
अपने पैसे से मुझको तुम कपड़े नये सिला दो जी

गाँव छोड़ कर शहर और परदेस चले जाते हैं लोग
लोगों को अपने घर में ही कोई काम दिला दो जी

सड़कें पानी बिजली रोटी रोज़गार का हाल बुरा
बरगद जैसी जमी हुई सत्ता को जरा हिला दो जी