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साँझो सें तड़पते भेलै भोर सुन गे सजनी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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साँझो सें तड़पते भेलै भोर सुन गे सजनी
साँझे सें तड़पते भेलै भोर

सुनोॅ लागी छै दुनियाँ के कोना-कोना
पिया बिनां मुश्किल छै आबेॅ हमरोॅ जीना
जेना कि मोर बिना मोरनी सुन गे सजनी

कारोॅ मेघ सौनोॅ के छें रहि-रहि ठनकै
आगिन भेलै बुन्दरी अंग-अंग झरकै
झिंगुर मचावै बड़ी शोर सुन गे सजनी

देखैं खातिर हुनका छै आँखीं हठ ठानै
इंजोरिया-अन्हरिया यें कुछुवे नै मानै
भींजी भींजै आँखी केरेॅ कोर सून गे सजनी

हमरे दरद लै केॅ कुहकै कोयलिया
हमरे लोर लै केॅ बरसै बदरिया
सूखी-सूखी काठ भेलै ठोर सुन गे सजनी