साँझ ही स्याम को लेन गई सुबसी बन मे सब जामिनि जायकै ।
सीरी बयार छिदे अँधरा उरझे उर झाँखर झार मझाइकै ।
तेरी सी को करिहै करतूति हुती करिबे सो करी तै बनाइकै ।
भोर ही आई भटू इत मो दुख दाइन काज इतो दुख पाइकै ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।